निर्जला एकादशी 2025: व्रत की कथा, इतिहास, महत्व एवं पालन विधि

व्रत की तिथि और पारण का समय
निर्जला एकादशी व्रत को लेकर इस बार भ्रम की स्थिति बनी हुई थी। दृग पंचांग के अनुसार, स्मार्त (गृहस्थ) जन 06 जून, शुक्रवार को व्रत रखेंगे और 07 जून, शनिवार को पारण करेंगे।
पारण का शुभ समय: 07 जून को दोपहर 01:41 बजे से शाम 04:31 बजे तक

वहीं, वैष्णव समाज (साधु-संन्यासी) के लोग 07 जून को व्रत रखेंगे और 08 जून को पारण करेंगे

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला एकादशी, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। विशेष बात यह है कि इस दिन जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा गया है। यह व्रत कठोर तप और साधना के समान फलदायी माना जाता है।

मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक जल से भरे कलश का दान करने से वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्यफल प्राप्त होता है। यह व्रत व्यक्ति को पापों से मुक्त करता है और मानसिक-शारीरिक रूप से बल प्रदान करता है। इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

भीमसेन की कथा और व्रत का इतिहास

एक बार महामुनि वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एकादशी व्रत का उपदेश दिया। इस पर भीमसेन ने निवेदन किया कि वह भूख के कारण नियमित व्रत नहीं रख सकते। तब व्यासजी ने बताया कि यदि वह पूरे वर्ष की एकादशी नहीं कर सकते, तो केवल निर्जला एकादशी का पालन करें — इससे उन्हें समस्त एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा।

भीमसेन ने इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से किया और अंततः वैकुण्ठ धाम को प्राप्त हुए। तभी से इस व्रत को भीमसेनी एकादशी कहा जाने लगा।

व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें

  1. सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक जल का पूर्ण त्याग करें। केवल आचमन के लिए थोड़ा जल मुख में ले सकते हैं।
  2. कम बोलें या मौन व्रत रखें। वाणी का संयम व्रत की सफलता के लिए आवश्यक है।
  3. दिनभर न सोएं और सत्कर्मों में समय बिताएं।
  4. ब्रह्मचर्य का पालन करें। मन, वचन और कर्म से पवित्र रहें।
  5. झूठ, क्रोध, विवाद और द्वेष से दूर रहें

व्रत की विधि और पारण

  • एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान विष्णु का धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प और तुलसी से पूजन करें।
  • पूरे दिन उपवास करें और जल ग्रहण न करें।
  • रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु का स्मरण करते रहें।
  • द्वादशी के दिन स्नान कर ब्राह्मणों को जलयुक्त कलश, वस्त्र, मिठाई, छाता, जूता और कमंडलु का दान करें।
  • फिर स्वयं सात्विक भोजन करके व्रत का पारण करें।

दान का महत्त्व

इस दिन किया गया दान अक्षय पुण्य देने वाला होता है। विशेष रूप से—

  • जल से भरे घड़े, वस्त्र, अन्न, गाय, चप्पल, छाता, शैय्या आदि का दान करें।
  • ब्राह्मणों को शक्कर युक्त जल कलश, मिठाई और दक्षिणा देकर प्रसन्न करें।
  • जलमयी धेनु (या प्रतीक रूप में बनी गाय) का दान सर्वोत्तम माना जाता है।

मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और नियम से करता है, वह न केवल अपने लिए, बल्कि बीते सौ और आने वाली सौ पीढ़ियों को भी वैकुण्ठ धाम पहुँचा देता है।

व्रत की महिमा

व्यासजी ने कहा था कि जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत करता है, वह वर्ष की 24 एकादशियों का फल प्राप्त करता है, इसमें अधिकमास की दो एकादशियां भी शामिल हैं।
जो श्रद्धा से इसकी महिमा को सुनता या सुनाता है, उसे भी अक्षय पुण्य और स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

निष्कर्ष:
निर्जला एकादशी न केवल आध्यात्मिक दृष्टि से, बल्कि मानसिक और शारीरिक शुद्धि के लिए भी अत्यंत लाभकारी व्रत है। यह व्रत आत्मसंयम, तप और भक्ति की परीक्षा है, जिसे श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त होकर भगवान विष्णु के परम धाम को प्राप्त कर सकता है।

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