आज़ादी का अमृत महोत्सव(#aazadikaamritmahotsav): जाने भारत के राष्ट्रपति के वीटो पावर के बारें में

आज़ादी का अमृत महोत्सव(#aazadikaamritmahotsav #independeceday2021): हर एक देश के राष्ट्राध्यक्ष के पास अपनी वीटो पावर होती है। जिसके बल पर वह अपने देश के दूसरे नागरिको से अलग हो जाता है। आज हम आपको भारतवर्ष के राष्ट्रपति के अधिकारों और उनकी वीटो पावर के बारें में बताने जा रहे हैं।
पहले ये जानते है की आखिर वीटो का मतलब होता क्या है। वीटो का मतलब होता है अपना फैसले को सबसे ऊपर रखना या किसी फैसले पर रोक लगा देना। वीटो पावर की भी बहुत सारी केटेगरी या श्रेणियाँ होती है। जिनमे से पहली होती है:
एब्सोल्यूट वीटो
एब्सोल्यूट वीटो में राष्ट्रपति ने अगर किसी बिल पर अपनी हामी नहीं भरी और उसे अपने पास ही रख लिया तो ये बिल कभी भी क़ानून बनकर लागू नहीं हो सकता।
पॉकेट वीटो
पॉकेट वीटो में राष्ट्रपति अगर चाहे तो किसी बिल को अपने पास अनंत समय के लिए रख सकता है। ये शक्ति भारत के संविधान ने राष्ट्रपति को दी हुई है। साथ ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा।
सस्पेन्सिव वीटो
सस्पेन्सिव वीटो में राष्ट्रपति किसी भी बिल को वापस कैबिनेट को रेकन्सीडरेशन के लिए भेज सकता है। लेकिन अगर पार्लियामेंट ने चर्चा कर के वापस उसे राष्ट्रपति के पास भेज दिया तो संविधान के अनुसार राष्ट्रपति उस बिल पर हस्ताक्षर करने लिए बाध्य है।
संविधान संशोधन बिल
संविधान संशोधन बिल अगर राष्ट्रपति को भेजा जाता है तो संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को उसपर हस्ताक्षर करने ही होते हैं।
मनी बिल
मनी बिल को राष्ट्रपति लटका नहीं सकते। ऐसे बिलों पर उन्हें या तो हां या न बोलना होता है।
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