लोहड़ी के त्यौहार से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

उत्तर भारत में लोहड़ी (Lohri) का त्यौहार बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। वैसे ये पंजाब और हरियाणा में सबसे ज्यादा प्रचलित है। लेकिन अब ये और भी प्रांतो में मनाई जाने लगी है। लोहड़ी को मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन लोग आग जला कर उसके चक्कर काटते हैं तथा उसे लावा, रेवड़ी, मूंगफली इत्यादि समर्पित करते हैं तथा इसे ही प्रसाद के रूप में बाटा भी जाता है। युवाओं में इस दिन का बड़ा क्रेज होता है। लड़के और लड़कियां अपने पारम्परिक पौशाक पहन कर खूब झूमते गाते हैं तथा इस दिन भंगड़ा और गिद्दा करते हैं।
लोहड़ी के त्यौहार में पौराणिक मान्यता भी है, एक तो ये शरद ऋतू की सबसे लम्बी रात होती है और इसके बाद सूर्य उत्तरायण हो जाता है। दूसरा इससे जुड़ी है दुल्ला भट्टी की कहानी। कहा जाता है दुल्ला भट्टी ने मुगलशासकों से अपने प्रान्त की रक्षा की थी तथा उनके द्वारा बंधक बनाई गयी लड़कियों को भी आज़ाद करा कर उनकी शादी की व्यस्वस्था भी की थी।
इस दिन नव विवाहित जोड़े तथा जन्मे बच्चों जिनकी पहली लोहड़ी होती है वो बड़ी ही धूम धाम से मानते है। तथा अग्नि को लावा, मूंगफली, रेवड़ी आदि डालकर अपने और अपने परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।
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