2025 के अंत तक दुनिया और भारत में क्या स्तिथि हो सकती है

यहाँ कुछ अनुमान और रुझान हैं जो दिसम्बर 2025 तक की आर्थिक स्थिति को लेकर दिखाई दे रहे हैं — खासकर भारत और वैश्विक स्तर पर। ये पूरी तरह निश्चित नहीं हैं, क्योंकि वैश्विक घटनाएँ, नीतियाँ, युद्ध-परिस्थितियाँ, प्राकृतिक आपदाएँ आदि बहुत असर कर सकते हैं, लेकिन मौजूदा समय में ये बातें संभव लगती हैं:
वैश्विक स्थिति के रुझान
- विकास दर (Growth) में मन्दी की झलक
- IMF जैसे संस्थान भविष्यवाणी कर रहे हैं कि 2025 में वैश्विक GDP वृद्धि करीब 3.0% के आस-पास रह सकती है।
- लेकिन वृद्धि अधूरी और असमान होगी — विकसित देशों में सुस्ती अधिक, उभरती-उभरती अर्थव्यवस्थाओं में बेहतर प्रदर्शन सम्भव है।
- मुद्रास्फीति (Inflation) और ब्याज़ दरें
- मुद्रास्फीति धीरे-धीरे घटने की सम्भावना है, लेकिन बहुत सारे देशों में यह लक्ष्य-स्तर से ऊपर बनी रहेगी।
- केंद्रीय बैंक (Central Banks) दरों की कटौती (rate cuts) के अधिकार क्षेत्र में होंगे जहाँ मुद्रास्फीति कंट्रोल में आएगी, लेकिन अमेरिका में शायद दरें स्थिर बनी रहेंगी क्योंकि वहाँ मुद्रास्फीति और ऊंचे ब्याज दरों के दबाव अभी कम नहीं हुए हैं।
- व्यापार तनाव / टैरिफ्स और नीतिगत अनिश्चितता
- विश्व स्तर पर व्यापार संबंधों में कट-फोड़ जारी है, विशेषकर अमेरिका-चीन, अमेरिका-भारत जैसे मामलों में। ये अनिश्चितताएँ निवेश, निर्यात और व्यापार वृद्धि को प्रभावित कर रही हैं।
- सरकारें और कंपनियाँ अपनी सप्लाई चेन में विविधता लाने की कोशिश कर रही हैं, ज़्यादा आत्मनिर्भरता (self-reliance) या नजदीकी देशों के साझेदारों की ओर बदलाव हो रहे हैं।
- ऋण और सार्वजनिक वित्त (Debt & Fiscal Health)
- कई देशों में सार्वजनिक ऋण (public debt), बजट घाटे, और ब्याज भुगतान की दबाव मजबूत हैं। नीतिगत खर्चों (policy spending) में कटौती करना पड़ सकता है या सामाजिक व बुनियादी (social/infrastructure) खर्चों में पुनर्समायोजन होगा।
- निवेश (investment) सुस्त हो सकता है क्योंकि अनिश्चितता ज़्यादा है।
भारत की स्थिति के अनुमान
- GDP वृद्धि (Growth)
- भारत की अर्थव्यवस्था अपेक्षाकृत मजबूत बनी हुई है। कई अनुमान हैं कि FY26 में भारत की GDP वृद्धि ~ 6.5%-6.9% के बीच हो सकती है।
- यह वृद्धि घरेलू मांग, बुनियादी ढाँचे में निवेश, सेवा क्षेत्रों की ताकत और खपत (consumption) पर आधारित लगती है।
- मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीतियाँ
- मुद्रास्फीति नियंत्रण की ओर है, लेकिन खाद्य और ईंधन जैसी चीजों में कीमतों की उतार-चढ़ाव बनी रह सकती है।
- RBI संभवतः ब्याज दरों को कुछ जगहों पर सधी हुई कटौती कर सकती है अगर मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी रही।
- निर्यात और व्यापार निरपेक्ष जोखिम (export/trade risks)
- अमेरिकी टैरिफ्स, अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों की अनिश्चितता और रसद-(logistics) एवं पूँजी प्रवाह (capital flows) में उतार-चढ़ाव से भारत के निर्यात पर दबाव हो सकता है।
- लेकिन भारत की घरेलू बाजार शक्ति (domestic demand) एक बड़ी बचाव रेखा बनेगी, और यदि सरकार ने उपयुक्त नीतियाँ अपनाईं जैसे कर राहत, उपभोग प्रोत्साहन आदि, तो आर्थिक वृद्धि को समर्थन मिलेगा।
- रुपया और वित्तीय बाज़ार
- विदेशी निवेश में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है यदि वैश्विक जोखिम बढ़े। ऐसे में मुद्रा (रुपया) पर दबाव हो सकता है, खासकर डॉलर की मजबूती या अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के बाहर जाने से।
- शेयर बाजार और बांड बाजारों में संवेदनशीलता बढ़ सकती है — यदि ब्याज दरें अचानक बदलें, तेल की कीमतें बढ़ें या वैश्विक आर्थिक संकट आये।
- सरकारी वित्त और कर नीति
- सरकार खपत-उन्मुख नीतियों (consumption-stimulating policies) और बुनियादी ढांचे में निवेश जारी रख सकती है विशेषकर चुनाव-पूर्व या राजनीतिक दबावों को देखते हुए। इससे कुछ करों में छूट या राहत की उम्मीद हो सकती है।
- लेकिन राजस्व घटने का जोखिम है यदि कर आधार कमजोर हो या आय वृद्धि धीमी हो जाए। बजट प्रबंधन और खर्च संतुलन (fiscal balance) बनाए रखना चुनौती होगी।
संभावित जोखिम (Upside / Downside)
- ऊर्जा की कीमतों और तेल: यदि तेल की कीमतें अचानक बढ़ें, तो आयात-निर्भर देशों को दबाव होगा, मुद्रास्फीति बढ़ेगी।
- भूत-पूर्व संकट: युद्ध-परिस्थितियाँ, प्राकृतिक आपदाएँ, महामारी पुनरावृत्ति आदि आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं।
- वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में झटके: जैसे अमेरिका में ब्याज दरों में बदलाव, फेडरल रिज़र्व की नीति, चीन की आर्थिक स्थिति आदि का असर होगा।
- नीति अनिश्चितताएँ: सरकारों की कर नीतियाँ, व्यापार नीतियाँ जैसे टैरिफ्स, निर्यात-निरोधक उपाय आदि, यदि अचानक बदलें तो व्यापार एवं निवेश प्रभावित होंगे।
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