Mahashivratri 2025: शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद का महत्व और ग्रहण करने की मान्यता
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव (mahashivratri 2025) पर अर्पित प्रसाद अत्यंत पवित्र और पापों का नाश करने वाला होता है। हालांकि, कुछ धार्मिक मान्यताओं में शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने से मना किया जाता है, जिससे भक्तों में संशय उत्पन्न होता है। यह लेख इसी विषय पर शास्त्रीय और धार्मिक दृष्टिकोण से जानकारी प्रदान करता है।
शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने की मनाही क्यों?
एक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव के गण ‘चंडेश्वर’ शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद के अधिकारी हैं। यह गण शिवजी की उपासना में निरंतर लीन रहते हैं और उनका संबंध भूत-प्रेतों से बताया जाता है। अतः यह कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण करता है, तो वह भूत-प्रेतों का अंश ग्रहण कर रहा होता है। यही कारण है कि सामान्यत: शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को खाने से मना किया जाता है।
कौन-सा प्रसाद ग्रहण किया जा सकता है?
शिव पुराण के विद्येश्वर संहिता के अनुसार, यदि शिवलिंग चंडेश्वर के अधिकार में है, तो उसका प्रसाद ग्रहण नहीं करना चाहिए। लेकिन यदि यह चंडेश्वर के अधिकार में नहीं है, तो भक्त इसे श्रद्धापूर्वक ग्रहण कर सकते हैं।
शास्त्रों के अनुसार, शिवलिंग की सामग्री पर निर्भर करता है कि उसका प्रसाद ग्रहणीय है या नहीं:
- ग्रहण नहीं करना चाहिए:
- मिट्टी, पत्थर या चीनी मिट्टी से बने शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करना वर्जित माना गया है।
- ग्रहण किया जा सकता है:
- धातु, पारद, या बाणलिंग (नर्मदा नदी में मिलने वाले प्राकृतिक शिवलिंग) पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण किया जा सकता है।
- यदि शिवलिंग की पूजा शालिग्राम के साथ की जाती है, तो उस पर अर्पित प्रसाद शुद्ध और ग्रहणीय होता है।
- शिवजी की मूर्ति पर चढ़े प्रसाद को भी ग्रहण करना शुभ माना जाता है।
स्वयंभू लिंग और ज्योतिर्लिंग पर चढ़े प्रसाद का महत्व
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग तथा स्वयंभू शिवलिंग चंडेश्वर के अधिकार से मुक्त माने गए हैं, अतः वहां चढ़ाया गया प्रसाद ग्रहण करना पापों का नाश करता है। ये ज्योतिर्लिंग हैं:
- सोमनाथ (गुजरात)
- मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
- महाकालेश्वर (मध्य प्रदेश)
- ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
- केदारनाथ (उत्तराखंड)
- भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
- काशी विश्वनाथ (उत्तर प्रदेश)
- त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
- बैद्यनाथ (झारखंड)
- नागेश्वर (गुजरात)
- रामेश्वर (तमिलनाडु)
- घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र)
इन ज्योतिर्लिंगों पर चढ़ाया गया प्रसाद पवित्र माना जाता है और इसे ग्रहण करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं।
सिद्ध शिवलिंग और उनके प्रसाद का महत्व
ऐसे शिवलिंग जो किसी सिद्ध भक्त या महात्मा द्वारा प्रतिष्ठित किए गए हैं, या जिनकी उपासना से किसी ने सिद्धियां प्राप्त की हैं, वहां चढ़े प्रसाद को ग्रहण करना शुभ माना गया है। उदाहरण के लिए, काशी के शुक्रेश्वर, वृद्धकालेश्वर और सोमेश्वर जैसे शिवलिंग।
शिव-तंत्र की दीक्षा लेने वालों के लिए नियम
शिव-तंत्र में दीक्षित साधक सभी शिवलिंगों पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण कर सकते हैं। उनके लिए यह प्रसाद ‘महाप्रसाद’ के रूप में स्वीकार्य होता है और शिव कृपा का द्योतक होता है।
प्रसाद जो ग्रहण नहीं कर सकते, उसका क्या करें?
यदि कोई भक्त शिवलिंग पर चढ़ा प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता, तो उसे फेंकना या किसी अन्य को देना अनुचित माना गया है। ऐसा करना प्रसाद का अपमान माना जाता है और इससे नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार, ऐसे प्रसाद को किसी बहते जल स्रोत, जैसे नदी, तालाब या झरने में प्रवाहित कर देना चाहिए।
निष्कर्ष
शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करने के संबंध में भिन्न-भिन्न मान्यताएं हैं। शिव पुराण के अनुसार, धातु, पारद, बाणलिंग, ज्योतिर्लिंग, स्वयंभू लिंग, और सिद्ध शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण करना शुभ माना गया है। लेकिन मिट्टी और पत्थर के शिवलिंग पर चढ़े प्रसाद को ग्रहण नहीं करना चाहिए। यदि कोई प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकता, तो उसे जल में प्रवाहित करना उचित माना गया है। श्रद्धा और शास्त्रों के अनुसार निर्णय लेना ही उचित होगा।
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