छोटी दिवाली विशेष: रूप चौदस (नरक चतुर्दशी) की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली, रूप चौदस, नरक चौदस या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन यमराज की पूजा का विशेष महत्व होता है। लोग दक्षिण दिशा में यम दीपक जलाते हैं, जिससे परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु से रक्षा प्राप्त होती है।
नरकासुर वध की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर (भौमासुर) का संहार किया था। नरकासुर एक अत्याचारी दैत्य था जिसने देवताओं, ऋषियों और पृथ्वी के अनेक राजाओं को कष्ट दिया। उसने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली थी, साथ ही 16,000 कन्याओं को कैद कर रखा था।
देवराज इंद्र ने भगवान कृष्ण से सहायता की विनती की। तब भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर प्रागज्योतिषपुर (नरकासुर का राज्य) पहुंचे। युद्ध में भगवान ने पहले दैत्य मुर और उसके छह पुत्रों का वध किया। इसके बाद भौमासुर स्वयं युद्ध के लिए आया।
भौमासुर को यह शाप था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों ही होगी। इसलिए भगवान कृष्ण ने युद्ध में सत्यभामा को सारथी बनाया और उनके हाथों भौमासुर का वध हुआ। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान ने भौमासुर के पुत्र भगदत्त को अभयदान दिया और प्रागज्योतिष का राजा नियुक्त किया।
भगवान कृष्ण ने जब नरकासुर का वध किया, वह दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी का था। इस विजय के उपलक्ष्य में द्वारका में दीप जलाए गए। तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा।
युद्ध के दौरान भगवान के शरीर पर रक्त के छींटे पड़े थे, जिन्हें साफ करने के लिए उन्होंने तेल और उबटन से स्नान किया। तभी से इस दिन अभ्यंग स्नान (तेल से स्नान) करने की परंपरा चली आ रही है, जिसे रूप चौदस कहा जाता है।
राजा रंतिदेव की कथा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, राजा रंतिदेव अत्यंत धर्मात्मा और दानवीर थे। उन्होंने जीवनभर किसी को कष्ट नहीं दिया, फिर भी जब मृत्यु का समय आया तो यमदूत उन्हें नरक ले जाने आए।
राजा ने आश्चर्य से पूछा — “मैंने तो सदैव धर्म का पालन किया, फिर मुझे नरक क्यों?”
यमदूतों ने उत्तर दिया — “राजन, एक बार आपके द्वार से एक भूखा ब्राह्मण बिना अन्न पाए लौट गया था। उसी पाप के कारण आपको नरक जाना पड़ेगा।”
राजा ने एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों से इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषियों ने कहा — “कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन व्रत रखें, ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उनसे क्षमा याचना करें।”
राजा ने ऐसा ही किया और अंततः पापमुक्त होकर विष्णु लोक को प्राप्त हुए। तभी से यह तिथि पाप और नर्क से मुक्ति के लिए व्रत करने की परंपरा बन गई।
राजा रंतिदेव की परीक्षा
कहा जाता है कि एक बार भयंकर अकाल के समय भगवान ने राजा रंतिदेव की परीक्षा ली। उन्होंने अपने राज्य के लोगों की सहायता के लिए अपना सर्वस्व दान कर दिया। स्वयं 48 दिन भूखे रहने के बाद, जब 50वें दिन उन्हें थोड़ा भोजन मिला, तभी एक-एक करके अतिथि उनके द्वार पर आए — पहले ब्राह्मण, फिर शूद्र, फिर एक कुत्ते सहित अतिथि, और अंत में एक चांडाल।
हर बार राजा ने बिना हिचकिचाए अपना अन्न और जल दूसरों को दे दिया। जब उन्होंने अंतिम बूंद पानी भी चांडाल को दे दिया, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश उनके सामने प्रकट हुए।
त्रिदेवों ने राजा की करुणा, धैर्य और त्यागभाव से प्रसन्न होकर उन्हें मोक्ष प्रदान किया।
इन कथाओं से यह संदेश मिलता है कि —
- सदाचार, करुणा और दानशीलता से मनुष्य पाप से मुक्त होता है।
- धैर्य और संयम कठिन समय में सबसे बड़ा धर्म है।
- और नरक चतुर्दशी के दिन यम दीपक जलाने, स्नान-पूजन और व्रत करने से न केवल पापों का क्षय होता है, बल्कि जीवन में प्रकाश, सौंदर्य और शुभता भी आती है।
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