Ekaanshastro: धार्मिक कार्यों में मौली क्यों बांधी जाती है?

मौली बांधने की परंपरा
मौली बांधना हिन्दू धर्म की वैदिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है। यह परंपरा यज्ञ आदि में संकल्प लेते समय शुरू हुई और धीरे-धीरे इसे रक्षा-सूत्र के रूप में मान्यता मिली। माना जाता है कि भगवान वामन ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था, जिससे यह परंपरा और भी महत्वपूर्ण बन गई। देवी लक्ष्मी ने भी राजा बलि को अपने पति की रक्षा हेतु मौली बांधी थी, इसलिए इसे रक्षाबंधन का प्रतीक भी माना जाता है।
मौली का अर्थ और नाम
‘मौली’ का शाब्दिक अर्थ है – ‘सबसे ऊपर’। यह शब्द सिर के लिए भी प्रयुक्त होता है, जैसे शिव को चंद्रमौली कहा जाता है। कलाई में बांधी जाने वाली मौली को ‘कलावा’ या ‘उप मणिबंध’ भी कहा जाता है।
मौली बांधने का मंत्र
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।”
मौली की बनावट
मौली सामान्यतः कच्चे सूत के धागों से बनाई जाती है। इसमें आमतौर पर लाल, पीला और हरा रंग होता है। कभी-कभी इसमें नीला और सफेद रंग भी शामिल होते हैं। तीन रंग त्रिदेव के प्रतीक होते हैं, जबकि पाँच रंग पंचदेवों को दर्शाते हैं।
मौली कहां बांधी जाती है?
मौली कलाई, गले और कमर में बांधी जाती है। मन्नत के रूप में मंदिरों में बांधी जाती है और पूर्ण होने पर उसे खोलकर पीपल के पेड़ के पास रख दिया जाता है या बहते जल में प्रवाहित किया जाता है। नई वस्तु या पालतू पशुओं पर भी इसे बांधा जाता है।
मौली बांधने के नियम
- पुरुष और अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में मौली बांधनी चाहिए।
- विवाहित स्त्रियां इसे बाएं हाथ में बांधती हैं।
- कलावा बांधते समय हाथ की मुट्ठी बंद होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए।
- मौली को हमेशा 3 बार लपेटकर वैदिक विधि से बांधना चाहिए।
मौली बांधने का शुभ समय
त्योहारों के अलावा मंगलवार और शनिवार को मौली बांधना शुभ माना जाता है। हर मंगलवार व शनिवार को पुरानी मौली हटाकर नई मौली बांधनी चाहिए।
मौली क्यों बांधते हैं?
मौली धार्मिक आस्था, स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक लाभों से जुड़ी होती है। शुभ कार्यों की शुरुआत, मन्नत या पूजा के समय मौली बांधकर संकल्प लिया जाता है। यह त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित रक्षा-सूत्र होता है जो व्यक्ति को नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
रक्षा-सूत्र का आध्यात्मिक रहस्य
मौली बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और शिव की कृपा प्राप्त होती है। लक्ष्मी से धन, पार्वती से शक्ति और सरस्वती से बुद्धि की प्राप्ति होती है। मौली किसी विशेष देवी-देवता के नाम पर भी बांधी जाती है, जिससे संकल्प की शक्ति बढ़ती है। कमर में बांधी गई मौली सूक्ष्म शरीर की रक्षा करती है, खासकर बच्चों को बुरी आत्माओं और रोगों से बचाने हेतु इसे बांधा जाता है।
स्वास्थ्य लाभ
मौली शरीर के त्रिदोष – वात, पित्त और कफ – को संतुलित करने में सहायक है। हाथ की कलाई से कई नसें जुड़ी होती हैं, जिन पर कलावा बांधने से ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, मधुमेह और लकवे जैसी समस्याओं से बचाव होता है।
कमर में मौली के लाभ
कमर में बांधी गई मौली सूक्ष्म शरीर को स्थिर रखती है और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करती है। बच्चों के पेट संबंधी रोगों से सुरक्षा के लिए इसे बांधा जाता है, कभी-कभी काले धागे के रूप में भी।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव
मौली बांधने से व्यक्ति को सुरक्षा और पवित्रता का बोध होता है, जिससे नकारात्मक विचार दूर रहते हैं। यह आत्म-नियंत्रण को बढ़ाता है और व्यक्ति को गलत मार्ग पर जाने से रोकता है।
निष्कर्ष:
मौली केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, स्वास्थ्य और आत्मबल का प्रतीक है। इसे बांधना एक पवित्र कर्म है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा, सुरक्षा और मानसिक शांति प्रदान करता है।
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