Vat Amawas – वट सावित्री व्रत: महत्व, कथा और पूजा सामग्री

व्रत तिथि एवं महत्व:
वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) हर वर्ष ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है। वर्ष 2025 में यह व्रत 27 मई (मंगलवार) को उदया तिथि के अनुसार रखा जाएगा। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखमय दांपत्य जीवन की कामना के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की पूजा करती हैं, जिसे देवत्रयी – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – का वास स्थान माना गया है।
पूजन विधि और सामग्री:
यदि आपके आस-पास वट वृक्ष नहीं है, तो उसकी एक टहनी लाकर पूजा की जा सकती है। पूजा की सभी सामग्री एक दिन पहले ही एकत्र कर लें।
आवश्यक पूजन सामग्री:
- साबुत चावल (अक्षत)
- हल्दी में रंगा कलावा या सफेद सूत
- लाल या पीले फूलों की माला
- मौसमी फल (जैसे आम, लीची, तरबूज)
- भीगे हुए काले चने
- धूप-बत्ती, देसी घी
- पान और सुपारी
- गंगाजल
- केले के पत्ते
- नए लाल या पीले वस्त्र
- मिट्टी का घड़ा
- तांबे या पीतल का लोटा
- सिंदूर, रोली और थोड़ी सी पिसी हल्दी
- प्रसाद के रूप में मिठाई
- बांस का पंखा
महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष की सात बार कच्चे सूत से परिक्रमा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा श्रवण करती हैं।
वट सावित्री व्रत कथा:
प्राचीन काल में भद्र देश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। उन्होंने 18 वर्षों तक प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने उन्हें एक सुंदर और तेजस्वी कन्या का वरदान दिया, जिसका नाम सावित्री रखा गया।
जब सावित्री विवाह योग्य हुई, तो वह स्वयं पति की खोज में निकलीं। उन्होंने वन में रह रहे, राज्यच्युत और अंधे राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना। नारद मुनि ने सावित्री के पिता को चेताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, परंतु सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रहीं और सत्यवान से विवाह कर लिया।
विवाह के बाद सावित्री अपने सास-ससुर की सेवा में लग गईं। नारद मुनि द्वारा बताई गई मृत्यु तिथि नजदीक आते ही सावित्री ने उपवास प्रारंभ किया और निर्धारित दिन अपने पति के साथ वन में चली गईं। सत्यवान को सिर में तीव्र पीड़ा हुई और वह सावित्री की गोद में मूर्छित हो गए। तभी यमराज उनके प्राण लेने आए।
सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने बार-बार उन्हें समझाया, लेकिन उनकी निष्ठा और पतिपरायणता से प्रसन्न होकर तीन वरदान दिए:
- सास-ससुर को दिव्य दृष्टि प्राप्त हो।
- राज्य पुनः प्राप्त हो।
- सावित्री को 100 पुत्रों का सौभाग्य प्राप्त हो।
तीसरे वरदान के साथ ही यमराज को सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े क्योंकि पुत्रवती बनने के लिए पति का जीवित रहना आवश्यक था। इस प्रकार सावित्री की भक्ति से सत्यवान जीवित हो उठे।
जब वे अपने घर लौटे तो देखा कि उनके सास-ससुर को नेत्र ज्योति मिल चुकी थी और उनका खोया हुआ राज्य भी पुनः प्राप्त हो गया था।
उपसंहार:
वट सावित्री व्रत नारी शक्ति, निष्ठा और पतिव्रत धर्म का प्रतीक है। सावित्री जैसी श्रद्धा और तपस्या से किसी भी संकट को टाला जा सकता है। यह व्रत वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और जीवनसाथी की दीर्घायु के लिए अत्यंत फलदायी माना गया है।
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