मोब लिंचिंग का राजीव गांधी कनेक्शन
आजकल सोशल मीडिया में एक अजीब तरह का सवाल बार बार पूछा जा रहा है कि क्या मोब लिंचिंग की शुरुआत राजीव गांधी के जमाने में हुई थी। क्या गरीबों की मसीहा कहलाने वाली पार्टी कांग्रेस मोब लिंचिंग (Mob Lynching) की जनक है।
इस तथ्य को समझने के लिए आपको कुछ दशक पहले जाना होगा। हम बात कर रहें हैं 1984 के सिख दंगों की। जिन नौजवान रीडर्स को नहीं पता उन्हें यह बता दें की 80 के दशक में खालिस्तान मूवमेंट अनपे जोरों पर था। उसके खात्मे के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने NSG कमांडो के द्वारा स्वर्ण मंदिर पर हमला करवा के उसका दमन कर दिया। परन्तु सिखों के धार्मिक स्थल पर हमला होने पर सिखों में आक्रोश बढ़ गया। जिसके फलस्वरूप इंदिरा गांधी जी की सुरक्षा में तैनात एक सिख जवान ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया।
अपने नेता के मारे जाने पर कांग्रेसी मरने मारने पर आमादा हो गए और तब हुआ 1984 का सिख विरोधी दंगा। सिखों के घरों में घुस घुस कर उन्हें बेआबरू किया गया और मार डाला गया। यह सब हुआ कांग्रेस के शासन के दौरान। क्या यह मोब लिंचिंग नहीं थी? इस पर पूर्व प्रधानमंत्री और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी से जब सवाल हुआ तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा की “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आस पास की जमीन तो हिलती ही है”।
किसी भी सभ्य समाज में दंगे या मोब लिंचिंग कहीं से भी सही नहीं है। 1984 के दंगे भी गलत थे और 2003 के दंगे भी गलत ही थे। ऐसी घटनाओ का न तो समर्थन होना चाहिए और ना ही पुनावृति। हमारा देश संविधान से चलता है। हमे एक ऐसे समाज की स्थापना करने की जरूरत है जहाँ व्यक्ति अपनी असहमति प्रदर्शित करने पर मोब लिंचिंग का शिकार ना हो। वह ना तो शोषित या ना ही भयभीत हो। एक अच्छे लोकतंत्र में असहमति का भी अधिकार सभी को मिलना चाहिए। आपका इस बारें में क्या कहना है। कमेंट कर के अपनी राय जरूर दें।
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