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संगति के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव

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आज हम आपके साथ बात करने जा रहे हैं संगति की। दोस्तों संगति का असर तो होता ही है। जिसकी जैसी संगति वैसा ही उसका आचरण। कुछ लोगों कहते हैं की उनपर किसी की संगति का असर नहीं होता है। परन्तु यह पूर्णतया सही नहीं है।

दरअसल हमारा मन चंचल होता है और इस पर संगति का प्रभाव तो होता ही है। यह बात अलग है की किसी पर ज्यादा होता है तो किसी पर बहुत कम। हम अपनी बात आप को एक उदाहरण देकर समझाते हैं।

हिंदी भाषा में “हार” एक शब्द है जिसके दो अर्थ होते हैं। पहला “पराजय” और दूसरा पहनने वाली “माला”। अब अगर इस “हार” की संगति “आ” के साथ हो जाए तो “आहार” हो जाता है। अगर “प्र” के साथ हो तो “प्रहार” हो जाता है। अगर “व्यव” के साथ हो जाए तो “व्यवहार” बन जाता है। अगर यही संगति “फु” के साथ हो तो “फुहार” हो जाता है। तो देखा आपने “हार” की जैसी संगति मिली उसका अर्थ वैसा ही हो गया। इनमे कोई सकारात्मक है तो कोई नकारात्मक।

इसी प्रकार मनुष्य जीवन में जैसी संगति होगी, मनुष्यों का जीवन वैसा ही बनेगा। इसलिए अपने जीवन में सबसे ज्यादा जरूरी बात यह है कि संगति बहुत ही सोच समझ कर बनायें। यही आपके जीवन की दशा और दिशा तय करता है। आपका क्या सोचना है इस बारें में। कमेंट कर के हमे बतायें।

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नोट: उपरोक्त दी गईं जानकारियाँ,  सिफारिशें और सुझाव प्रकृति में सामान्य हैं। यदि आप स्वयं पर इसका प्रयोग करना चाहते हैं तो पहले एक पंजीकृत या प्रमाणित पेशेवर या ट्रेनर से परामर्श जरूर कर लें। उसके उपरान्त ही इस सलाह पर अमल कीजिये।

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